Saturday, 16 July 2016

मैंने भेजी को बदलते हुए देखा है...

मैंने भेजी को बदलते हुए देखा है...

मैंने भेजी को बदलते हुए देखा है...
मैंने जिंदगी को कभी हसते हुए तो कभी रोते हुए देखा है... 

मैंने मौसमों को आते हुए और जाते हुए देखा है...
पतझड़ में पत्तो को पेड़ों से जुदा होते हुए देखा है...
फिर उन्ही बेजान पेड़ों को बारिश को देखकर मुस्कुराते हुए देखा है...
हरियाली की चादर ओढ़कर शरमाते हुए देखा है...
तेज हवाओ के साथ बहते हुए; झूमते हुए नाचते हुए देखा है...
मैंने भेजी को बदलते हुए देखा है ...

मैंने भरे तालाबो को कब्रिस्तान बनते हुए देखा है...
बूंद बूंद पानी के लिए जानवरों को तरसते देखा है ...
बेजान हुए जंगल में दर बदर भटकते देखा है ...
सूखे नालो को नदियों में तब्दील होते हुए देखा है...
समय को बदलते देखा है; कहीं ठहरते हुए तो कंही चलते हुए देखा है ...
मैंने भेजी को बदलते हुए देखा है...

मैंने अमावस की काली रातों में बिखरे सन्नाटे को देखा है...
उसी काली रात में टूटते तारों को, चमकते जुगनुओ को देखा है...
चाँद को बादलों के साथ आंख मिचोली खेलते हुए देखा है...
उसी अँधेरे से सहमे हुए भेजी को चाँद की चांदनी में नहाते हुए देखा है...
मैंने भेजी को बदलते हुए देखा है....

मैंने जंगल को कटते हुए उजड़ते हुए देखा है...
जहाँ देखना मुश्किल हो वहां रास्ता बनते हुए देखा है...
और जिस रास्तो पर चलना मुश्किल हो वहां गाडियों को दौड़ते हुए देखा है...
पगडंडियों को पक्की सड़को में बदलते हुए देखा है...
उन्ही सड़को को कटते हुए, बिगड़ते हुए; दोबारा बनते हुए देखा है...
मैंने भेजी को बदलते हुए देखा है...

बसे बसाये गाँव को उजड़ते हुए; रोते हुए बिलखते हुए देखा है...
उसी गाँव को गिरकर, लड़खड़ाकर, सँभलते हुए देखा है....
मैंने उसी गाँव पर मुसीबतों के काले बादलों को मंडराते हुए देखा है...
उन्ही काले बादलों को गाँव की आँखों से बरसते हुए देखा है...
मैंने भेजी को गिरकर उठते हुए देखा है..
तिनका तिनका समेटकर घोसलों को बनते हुए देखा है...
बाजारों को सजते हुए देखा है, संवरते हुए देखा है....
गाँव को वापस बसते हुए देखा है...
मैंने भेजी को बदलते हुए देखा है...

बंजर चट्टानों को कड़ी धूप में तड़पते हुए देखा है ...
कलियों को फूलों में और फूलों को काँटों में बदलते हुए देखा है...
जंगल को बे बसी में जलते हुए सुलगते हुए देखा है...
उन्ही बंजर चट्टानों को हसते मुस्कुराते हुए देखा है...
दुल्हन की तरह हरे दुपट्टे में सजकर इतराते हुए देखा है...
मैंने भेजी को बदलते हुए देखा है...

बदलते मौसम की तरह इंसानों को बदलते हुए देखा है...
मैंने रिश्तो को बनते हुए बिगड़ते हुए देखा है ...
सूरज की रौशनी में चमकते हुए देखा है...
चाँद की चांदनी में धमकते हुए देखा है..
पुराने दोस्तों को दूर जाते हुए और नए लोगो को करीब आते हुए देखा है...
मैंने भेजी को बदलते हुए देखा है...

मैंने सूरज की पहली किरणों को घोर अँधेरे के साथ लड़ते हुए देखा है...
शाम ढलते ढलते उसी सूरज को थककर पहाड़ो में छिपते हुए देखा है...
फिर दोबारा सूरज को उजलते हुए देखा है...
आसमान का रंग बदलते हुए देखा है...
लोगो की किस्मत बदलते हुए देखा है, उनका ढंग बदलते हुए देखा है ...
मैंने भेजी को बदलते हुए देखा है...

मैंने भेजी को बदलते हुए देखा है...
मैंने जिंदगी को कभी हसते हुए तो कभी रोते हुए देखा है... 

शुभम गुप्ता
(सहा. कमा.)
208 कोबरा वाहिनी
केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल