प्रेम को कुछ इस तरह से जी रहे हैं आजकल हम
हो न पाया जो हमारा हम उसी के हो गए हैं !
ज़ोर से थामे हुए हैं इक तरफ़ से डोर को हम
देख सकते हैं इधर से जबकि ख़ाली छोर को हम
एक हठ है या समर्पण ये नहीं हम जानते हैं
हो नहीं सकते अलग उससे यही हम मानते हैं
इस विरह के काल में कुछ स्वप्न ले अंतिम विदाई
शुष्क आँखों की सतह पर बूँद खारी बो गए हैं !
रात को उठ उठ विकल हो चाँद अपना खोजते हैं
बावले हैं धूप में भी बाट उसकी जोहते हैं
एक तारा तक नहीं अब मन लुभाता है हमारा
मन उसी का हो गया जिसने किया हमसे किनारा
इस जगत की बात कोई क्या भला अब हम सुनेंगे
खो गया जो आसमां में हम उसी में खो गए हैं !
नैन श्यामल मेघ से हम आँज कर बैठे हुए हैं
हम सभी से और अपने आप से रूठे हुए हैं
क्या सहर क्या साँझ अब तो हर पहर उसका हुआ है
साथ जो आया नहीं है ,ये सफ़र उसका हुआ है
यूँ नहीं हम आ गए हैं प्रेम की वीरान नगरी
प्यार से उसने बुलाया था हमें ही,,तो गए हैं !
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