Tuesday, 25 September 2018

Echo of yr voice.


Sometimes
I feel the distance
and I get lost,
but then; 
the echo of your voice tells me to be strong.

So I silence my mind and I follow my path,
which ends up being ours; and I reserve the beautiful things for those tremble days while I send you the echo of my voice.

Who i am.?


Some days, to the world,
I feel like
the fake drawers on bathroom cabinets
or the false pockets
on a suit's vest;
a reasonable addition
that looks like it belongs,
but what possible purpose
will i ever serve?

Some days, to the world,
I feel like
a thunderstorm with too little thunder
and too much rain
and no fathomable idea
what to do with all the lightening
growing inside me.

Some days, to the world,
I feel like
a book with no cover and a title page
that is torn;
I am filled with words...
but only those that care to read...
will ever understand..
what i am about...
Who I am..

Wednesday, 29 August 2018

बस्तर डायरी

【बस्तर डायरी 】

सैकड़ों मासूम आदिवासी का मुखबिर बता सर कलम कर देना/ सड़क बना रहे इंजीनियरों का गला रेत देना/गरीब आदिवासियों से तेंदू पत्ते की जबरन उगाही करना/ सड़क-स्कूल-हॉस्पिटल सबसे आदिवासियों को वंचित रखना !!!

ठहरिये! यह किसी सीरिया या इराक की पृष्ठभूमि नहीं है। यह पृष्ठभूमि है बस्तर के अबूझमाड़ की जो सुकमा-बीजापुर-दंतेवाड़ा-नारायणपुर में फैले हुये जंगल के आदिवासियों के शोषण की बदस्तूर कहानी है जिसे आप आंतरिक आतंकवादी/नक्सलवादी कहते हैं और दिल्ली-मुम्बई के डीलक्स बंगलो में बैठे बुद्धिजीवी शोषित/दमित/सर्वहारा प्रतिनिधि/क्रांतिकारी कहते हैं।

आप बस्तर कभी गये हैं? जवाब होगा नहीं।
फेसबूक पर नक्सली आंदोलन(तथाकथित) के समर्थक गये हैं?जवाब होगा नहीं।

देखिये! हर इंसर्जेंसी का एक सोचा-समझा सुनियोजित सिंडिकेट होता है। वह स्थानीय लोगों को पहले तो भड़काता है। जाहिर सी बात है कि दुनिया का कोई भी देश हो, लोग अपनी व्यवस्था से थोड़ा-बहुत रोष अवश्य रखते हैं। यह सिंडिकेट उसी रोष को भुनाता है और बस्तर की बात की जाये तो जहां शिक्षा बिल्कुल ना हो/एक बड़े हिस्से ने ट्रेन तक नहीं देखा हो/सभ्यता इस कदर अवरोधित रही हो कि लोग अधनंगे घूमते हों, वहां ब्रेन वाश कर खुद को मसीहा और सरकार को एलियन समझा देना बड़ी आसान बात है।

आखिर बस्तर के लोगों ने हथियार उठाये थे क्या? नहीं!यह आंध्रा से भागे हुये नक्सलियों की शरणास्थली बनी थी, क्योंकि आंध्रा सरकार नक्सलियों के समापन के लिये प्रतिबद्ध हो चुकी थी। यह क्षेत्र भोपालपट्टनम कॉरिडोर के जरिये नक्सलियों  का एक सुरक्षित पनाहगाह बना, क्योंकि जंगल छुपाव होता है। आदिवासियों को उनकी मौजूदगी हरगिज पसंद नहीं आयी थी। सो एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत धीरे-धीरे उनका ब्रेन वाश किया गया और जो नहीं माने उनको तालिबानी फरमान के जरिये बीच गांव सर कलम कर दिया गया जिसे बौद्धिक लोग'जनताना अदालत'की संज्ञा देते हैं।

दशकों से सरकारी तंत्र का इस हिस्से में प्रवेश नहीं था। वजह थी सुदूर क्षेत्र/घना जंगल/बुनियादी व्यवस्थाओं का अभाव और हम आप जैसे लोग जो बस्तर को अब हाल से जानते हैं।

आंध्रा से भागे कॉमरेडों ने इसी क्षेत्र को पनाहगाह बनाया। किसी बस्तरिया का इसमें कोई रोल नहीं रहा था कभी भी, यकीन नहीं तो सर्च करके देखियेगा टॉप के सारे कैडर आंध्रा के ही मिलेंगे।

वर्तमान की बात कहूं तो अब यह एक सिंडिकेट की तरह चलता है। जंगल में हथियार उठाये नक्सली घूमते हैं, जिन्हें निर्देश टॉप कैडर देता है। इस विंग के विचारक शेष भारत में इनके लिये सिम्पेथी गेन करते हैं। जाहिर है कि आप अपनी सरकार को शोषक और फौज को बलात्कारी मानने में तनिक भी देर लगायेंगे नहीं। तो इनका काम आसान हो जाता है। जब सरकार इनपर थोड़ी भी सख्ती दिखाती है तो 'मानवाधिकार'के नाम पर तमाम बौद्धिक इस कदर दबाव बनाते हैं कि सरकार को मजबूरन नरमी बरतनी पड़ती है। वजह? वजह हैं आप! आप घर बैठे इस कदर भावुक हो गये। गूगल ज्ञान से कई पोस्ट लिख दिये। आपको दो मिनट नहीं लगा सरकार और फौज को हत्यारा बताने और सोचने में और यह सिंडिकेट कामयाब हो गया।

कभी आपने सोचा कि मानवाधिकार के धंधे पर फल-फूल रहे NGO और इनके बौद्धिक संचालक विलासी जीवन को छोड़ बस्तर जाकर क्यों नहीं रहते?क्यों नहीं वो आदिवासी हितों के लिये वहां काम करते हैं? एक गर्भवती आदिवासी महिला तड़प-तड़प कर मर जाती है क्योंकि सड़क है ही नहीं जो उसको अस्पताल समय पर लाया जाता! ये बौद्धिक क्यों नहीं विरोध करते नक्सलियों का सड़क काटने पर/सड़क निर्माण में लगे मजदूरों की हत्या का/ सड़क को सुरक्षा दे रहे फौज पर हो रहे हमलों का?

आखिर सड़क-शिक्षा-स्वास्थ्य-बिजली से ग्रामीणों को अलग रखकर कौन सी क्रांति चलती है?कभी सोचे हैं! नहीं तो सोचिये अब।

अब बात करता हूँ एन्टी नक्सल आपरेशन का। जब भी फौज/पुलिस जान पर खेल नक्सलियों को मारती है तब अक्सर कुछ नामचीन प्रोटेस्ट करते दीखते हैं। यह बताते हैं कि यह गरीब मासूमों की हत्या है। फेक एनकाउंटर है।

मासूम हथियार लेकर घूमते हैं क्या? और जो फौज को मारे थे फिर वो क्या थे? द्वंद का उत्तर आपके पास ही है, अगर आप भावुक बने बिना निर्णय लेंगे तो।
क्यों माना आपने उनकी बात को?क्या वो एनकाउंटर के समय वहां थे?आखिर!महानगरों में बैठ वो कैसे निर्णय लिये कि यह एनकाउंटर फेक था और मारे गये लोग तथाकथित मासूम और निर्दोष थे? यह प्री प्लान्ड रहता है, जिसमें थिंक टैंक का काम ही यही रहता है ताकि शेष भारत से सिम्पेथी ली जा सके और नक्सलियों को जस्टिफाई कर फौज को हत्यारा और सरकार को शोषक सिद्ध किया जा सके।

बाकी मुझपर विश्वास करें, यह बिल्कुल जरूरी नहीं। आप स्वयं पहुंचिये घटनास्थल पर। ग्रामीणों से पूछिये। जिनका एनकाउंटर हुआ है उनपर पहले से दर्ज अपराधों की जानकारी प्राप्त कीजियेगा। अब यह मत कहियेगा कि पुलिस ने फर्जी केस दर्ज कर दिया होगा। ऐसा होता तो 1991 के अपराधी का फेक एनकाउंटर 2018 में नहीं किया जाता। किया जाता क्या?

तमाम बलात्कार के आरोप लगते रहे। आगे भी लगेंगे।इस कदर होहल्ला होना सुनायी दिया, किंतु केस का निर्णय क्या रहा, यह कभी पता किया आपने?अब आप कहेंगे कि केस पुलिस ने दबा दिया। उसे दबाना ही होता तो वो लेती क्यों? जाकर पूछियेगा कभी उन महिलाओं से कि किसने बन्दूक माथे पर रखकर केस करवाया था।लेकिन आपको रूचि सिर्फ फौज को बलात्कारी कहने में थी।अंजाम कुछ भी रहा हो, यह खालिस बौद्धिक सिंडिकेट यहां भी सफल रहा।

अब बात करूंगा सरकार की। मैं राजनीतिक बात करने से हमेशा बचता हूँ। लेकिन जब छत्तीसगढ़ में माननीय मुख्यमंत्री रमन सिंह की सरकार को देखता हूँ तो यही सोचता हूँ कि हर राज्य को ऐसी सरकार मिलनी चाहिये।हैरत होती है बीजापुर-सुकमा के सरकारी अस्पतालों को देख कर/मिल रही डीलक्स सुविधाओं को देख कर/मुफ्त दवाइयों का बेहतरीन स्टॉक/बिजली की बेहतरीन सुविधा वो भी सुदूर क्षेत्रों तक/युद्धस्तर पर सड़क निर्माण/ शिक्षा के लिये शानदार परिसर और सुविधायुक्त स्कूल/ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और स्वच्छता को/किसी भी तंत्र में बिचौलियाविहीन व्यवस्था को देखकर।

पुनश्च कहुंगा कि मेरे बात पर भरोसा करने की कोई वजह नहीं, लेकिन किसी विद्वान की बात को ही सच मान कर सरकार को गाली देने से तो बेहतर है कि एक बार खुद बस्तर घूम आइये। मैं दावे से कह सकता हूँ कि यहां बैठ कर जो लोग नक्सलियों से सहानुभूति की बात करते हैं/लिखते हैं उनमें से शायद ही कोई कभी बस्तर गया होगा। अगर गया होगा भी तो पूर्व निर्मित मानसिकता के साथ वो भी महज दो-चार दिन के लिये।

जंग कभी भी जायज नहीं। टैंक ने हमेशा धरती माँ की गोद बांझ ही की है। लेकिन जंग अगर जायज ही है तो सिर्फ एक सवाल आखिर में आपसे कि सुबह उठते ही एक आदमी आपके घर के बाहर आपको AK-47 लिये दीखे। निर्णय आपका है कि वो मुझे होना चाहिये या किसी नक्सली/आतंकवादी को।

भावुक होकर निर्णय मत किया कीजिये । NGO के नाम पर अथाह पैसा कमाने वाले थिंक टैंक का काम ही होता है आपको बरगलाना/शब्दों-तर्कों के मायाजाल से दिग्भ्रमित करना/एनकाउंटर को फेक बताना और फौज की शहादत को सरकार पर थोपना। यही ब्लू प्रिंट है जो हर इंसर्जेंसी का मूल सिद्धांत होता है।

बाकी सरकार आपकी है और फौज भी आपकी ही है। गाली दीजिये या सम्मान कीजिये, उसे अपने कर्तव्य का बोध है क्योंकि वह लोकतंत्र के मूल्य को जानती है। वह नक्सली नहीं है जो अपने बच्चे को भर्ती भेजने से मना करने पर बाप का पैर काट लेती हो और बहन को जबरन जंगल लेकर चली जाती हो।

आधे गिलास पानी को आधा भरा या आधा खाली कह देना सकारात्मकता/नकारात्मकता हो सकती है, लेकिन कुछ बूंद पानी कम हो तो उसपर विरोध विशुद्ध मूर्खता है क्योंकि लोकतंत्र में एक-एक नागरिक की भागीदारी कहीं ना कहीं बनती ही है।

Wednesday, 22 August 2018

जो हो नही पाया हमारा , हम उसी के हो गए हैं।


प्रेम को कुछ इस तरह से जी रहे हैं आजकल हम
हो न पाया जो हमारा हम उसी के हो गए हैं !

ज़ोर से थामे हुए हैं इक तरफ़ से डोर को हम
देख सकते हैं इधर से जबकि ख़ाली छोर को हम
एक हठ है या समर्पण ये नहीं हम जानते हैं
हो नहीं सकते अलग उससे यही हम मानते हैं

इस विरह के काल में कुछ स्वप्न ले अंतिम विदाई
शुष्क आँखों की सतह पर बूँद खारी बो गए हैं !

रात को उठ उठ विकल हो चाँद अपना खोजते हैं
बावले हैं धूप में भी बाट उसकी जोहते हैं
एक तारा तक नहीं अब मन लुभाता है हमारा
मन उसी का हो गया जिसने किया हमसे किनारा

इस जगत की बात कोई क्या भला अब हम सुनेंगे
खो गया जो आसमां में हम उसी में खो गए हैं !

नैन श्यामल मेघ से हम आँज कर बैठे हुए हैं
हम सभी से और अपने आप से रूठे हुए हैं
क्या सहर क्या साँझ अब तो हर पहर उसका हुआ है
साथ जो आया नहीं है ,ये सफ़र उसका हुआ है

यूँ नहीं हम आ गए हैं प्रेम की वीरान नगरी
प्यार से उसने बुलाया था हमें ही,,तो गए हैं !

Wednesday, 25 July 2018

Mashup Oldies


Bekarar karke hame yu naa jayiye...
Aapko hamari kasam laut aayiye...
Bekarar karke hame yu naa jayiye...
Aapko hamari kasam laut aayiye...

Ek ladki bheegi bhagi si...
Soti raaton mein jaagi si...
Ek ladki bheegi bhagi si...
Soti raaton mein jaagi si...
Mili ik ajnabi se...
Koyi aage na peechhe...
Tum hi kaho ye koyi baat hai... hmmm...

Pyaar hua ikraar hua hai...
Pyaar se phir kyon yeh darrta hai dil...
Pyaar hua ikraar hua hai...
Pyaar se phir kyon yeh darrta hai dil...

Suhana safar aur yeh mausam hasin...
Suhana safar aur yeh mausam hasin...
Humein darr hai hum kho na jaye kahin...
Suhana safar aur yeh mausam hasin...

Jeena Yahan Merna Yahan...
Iske Siva Jaana Kahan...
Jeena Yahan Merna Yahan...
Iske Siva Jaana Kahan...

Mana Janab Ne Pukaara Nahin...
Kya Mera Saath Bhi Gawara Nahi...
Muft Main Banke Chal Diye Tan Ke...
Wallah Jawab Tumhara Nahin...
Wallah Jawab Tumhara Nahin...

Intaha ho gai intazaar ki...
***Break***
Aai na kuchh khabar mere yaar ki...

Yeh jo mohabbat hai...
*yeh unka hai kaam...
*Are mehbub kaa jo...
*bus lete huye naam...

*Dilbar mere kab tak mujhe...
Aise hi tadpaaoge...
Main aag dil mein lagaa doongaa jo...
Ke pal mein pighal jaaoge...

Main shaayar to nahin...
Main shaayar to nahin...
magar aae hanseen...
Jab se dekha maine tujh ko mujh ko...
Shaayari aa gayee...

Dum maaro dum... mit jaae gum...
Bolo subah shaam...
*Hare krishna hare raam...
*Dum maaro dum... mit jaae gum...
Bolo subah shaam...
*Hare krishna hare raam...

*Tu tu hai wahi dil ne jise apna kaha...
Tu hai jahan main hoon vahan...
Ab to yeh jeena tere bin hai saza...

Badan pe sitare lapate huye...
O jaane tamanna kidhar ja rahi ho...
Zara paas aao to chain aa jaaye...
Zara paas aao to chain aa jaaye...

Jaane Jaan Dhoondta Phir Raha...
Hoon Tumhe Raat Din Main Yahan Se Vahan.

Aao Huzoor Tumko...
Sitaaron Mein Le Chaloon..
*Dil Jhoom Jaae Aise...
Bahaaron Mein Le Chaloon...

Pyaar hamein kis mod pe le aaya...
*Ke dil kare haye koi ye bataye kya hoga
***Break***
Pyaar hamein kis mod pe le aaya...
*Ke dil kare haye koi ye bataye kya hoga

*O mere dil ke chain...
Chain aaye mere dil ko dua kijiye...
*O mere dil ke chain...
Chain aaye mere dil ko dua kijiye...

*O hansini meri hansini...
kahan ud chali...
Mere armaanon ke pankh lagaake...
Kahan ud chali...
*O hansini meri hansini...

*Yeh sama... sama hai yeh pyaar Kaa...
Kisi ke intazaar kaa...
Dil na chura le kahin mera....
Mausam bahar kaa...
Yeh sama... sama hai yeh pyaar Kaa...
Kisi ke intazaar kaa...
Dil na chura le kahin mera...
Mausam bahar kaa...

Chalte Chalte Mere Ye Geet Yaad Rakhna..
Kabhi Alvida Na Kehna...
Kabhi Alvida Na Kehna...
Chalte Chalte Mere Ye Geet Yaad Rakhna..
Kabhi Alvida Na Kehna...
Kabhi Alvida Na Kehna...
Kabhi Alvida Na Kehna...
Kabhi Alvida Na Kehna..

Sunday, 25 March 2018

तेरी खुशी

कहानी भी मेरी थी, लिखावट भी,
वो परछाई भी मेरी थी, सिल्हट भी,

छूटता गया वो वक़्त हाथ से मेरे,
कुछ अधूरे सपने कुछ सवाल थे मेरे,

मैं ही क्यों?

कुछ सवालात आज भी है,
कुछ अनकही आवाज आज भी है,
जनता था सब बस चाहता था कि वो कहे,
उन सवालों के जवाब तो अबतक थे अनकहे,

दुनिया खूबसूरत ह ये सुना था, देखा भी था,
पर तेरे छिपाने का ये अंदाज ओर भी हसीन हैं,
तेरी मुस्कान ने ही बयां कर दी थी सच्चाई तो,
लेकिन उसी मुस्कान के लिहे ही तो जिया करते थे,

सिर्फ एक ही चीज से नफरत की थी,
झूट से,
अब वो तेरा हुआ, तो मझे भी उसे गले लगाना पड़ा,
तू छिपाती रही, मैं मुस्कुराता रहा,
तुझे खुश देखकर, गुनगुनाता रहा,

कैसे बताता तुझे, की संभल कर रहना,
कभी मौका ही नही मिला,
तेरी परवाह करता था ना,
समझ ही नही पाया कि दुनिया से तुझे बचाऊँ या तेरी हसी को,

तेरी झूट की भी आदत डाल ली थी मैने,
तुझे एहसास भी नही था, ओर न शक़,
क्योकि वो मैं था,
तुझसे कहीं ज्यादा,
तेरी हसी , तेरी खुशी से मोहब्बत करता था।।